Pre-cum-Mains GS Foundation Program for UPSC 2026 | Starting from 5th Dec. 2024 Click Here for more information
इस लेख को लिखने का शायद इससे बेहतर समय और नही है. आपमे से कईयो ने अपने सपने की दिशा मे एक कदम और आगे बढ़ा दिया होगा. पर कई पीछे छूट गये होंगे. और बहुत लोग, दोस्त, सांगी, साथी, आएँगे अभी आपको दिलासा देने. दे चुके होंगे. दे रहे होंगे. क्या मैं आपको दिलासा दूँगी? बिल्कुल नही. असफलता कितना चुभती है और भी ज़्यादा, जब लोग दिलासा देते हैं, ये कहने की ज़रूरत नही. मुझे तो सिर्फ़ शांत रहना अच्छा लगता है, कुछ और मैं करती ही नही. खेर, अपने बारे मे बताने के लिए पूरा का पूरा मेरा ब्लॉग पेज है, वो नही करना मुझे.
रिज़ल्ट ने किसी की याद दिला दी है मुझे. और मैं उसकी कहानी आप सबके साथ बताए बिना नही रह पा रही. शायद आपमे से कुछ को ही सही निराशा से यह कहानी दूर कर पाएगी, ऐसी आशा लेके ये लेख लिख रही हूँ.
एक दिन मेरे ऑफीस मे मुझे एक कॉल आया और रिसेप्षनिस्ट ने कहा की एक लड़का आपसे बात करने चाहता है. मैने फोन ट्रान्स्फर करने को कहा और उस लड़के से बात की. लड़का कुछ नौकरी चाहता था ताकि वो अपने पैरों पर खड़ा हो सके. मुझे हर दिन लगभग ऐसे कॉल आते थे. मैने दूसरे दिन का वक्त देकर फोन रख दिया. दूसरे दिन कोई दस बजे के आस पास एक गोरा, चिटा, दुबला पतला लड़का मेरे कॅबिन के गेट पर खड़ा हो गया. मैने बोला, ‘येस’? उसने कहा आपसे कल बात हुई थी. तब मुझे याद आया और मैने उसे बैठने को कहा. हमारी बातचीत शुरू हुई. और जब मैने बात ख़तम की लगा मैं, मैं रही ही नही. इस लड़के ने मुझे बदल दिया.
ये लड़का पिछले कुछ साल पहले तक अमेरिका मे पढ़ रहा था. घर मे सभी उसको ‘हाइ अचीवर’ के तौर पर देखते थे. और एक दिन ये लड़का एक accident का शिकार हुया. जब हॉस्पिटल मे आँखें खुली तो मेडिकल साइन्स के लिए एक केस स्टडी बन गया था वो. ये लड़का अपनी याददास्त ही नही इंसान होने के लिए हम बचपन से जो कुछ सीखते हैं: चलना, बोलना, यहाँ तक की साँस लेना, तक भूल गया था.
चलने के लिए पैरों को एक एक करके आगे बढ़ाना पड़ता है. ये दिमाग़ से उतर गया. खाना खाने के लिए मुँह चलाना पड़ता है. ये दिमाग़ से उतर गया. रात सोने के लिए है और दिन जागने के लिए. ये दिमाग़ से उतर गया. पलकें झपकानी है, ये दिमाग़ से उतर गया. पूरा का पूरा दिमाग़ सिर्फ़ आज मे सिमट गया. जैसे ज़िंदगी का पहला दिन हो. जैसे की वो अभी जन्मा हो. इस बच्चे का दिमाग़ ना केवल अपनी पूरी ज़िंदगी भूल कर सपाट हो गया था, कुछ नयी इन्फर्मेशन स्टोर करने की ताक़त भी खो चुका था. पूरी की पूरी ज़िंदगी सिर्फ़ आज, इस पल, इस सेकेंड मे ज़िंदा रह सकती थी. पिछला हर वक्त, और पिछली सीखी हुई हर इंसानी ताक़त वो भूल चुका था. और नया अगर सीख भी ले, तो कुछ भी याद नही रख सकता था.
अमेरिका के डॉक्टर्स ने कहा ये बिल्कुल नया केस है. शायद ठीक नही हो पाएगा. लेकिन इस बच्चे की माँ डॉक्टर्स, भले ही वो अमेरिका के क्यूँ ना हों, की बात मान कर कोशिश करना नही छोड़ना चाहती थी. एक दिन उन्होने अपनी नौकरी छोड़ दी. अमेरिका की हाइ paying नौकरी. बच्चा ही फुल-टाइम नौकरी बन गया. कब तक चलेगा पता नही था. उतने के बाद भी कुछ होगा की नही पता नही था. शुरुआत कहाँ से करें पता नही था. कैसे आगे बढ़ें, क्या आज़माया जाए, पता नही था. बच्चा जितना vague और क्लूलेस था, माँ भी उतनी ही क्लूलेस थी
तो शुरुआत हुई साँस लेना सीखाने से. एक साँस लो. दूसरी छोड़ो. याद रखो इस प्रोसेस को बेटा. याद रखो. एक साँस लो, दूसरी छोड़ो. कई महीने सिर्फ़ यही एक लेसन. यही एक होमवर्क. यही एक तैयारी. जीना है. साँस लो, साँस छोड़ो. जीने के लिए साँस ज़रूरी है बेटा. साँस लो, साँस छोड़ो. नही बेटा मत हारो. साँस लो, साँस छोड़ो. अर्रे भूल गये, पहले साँस छोड़ो नही, पहले लो. भगवान मे मैं बहुत विश्वास नही करती, हाँ किसी एक यूनिवर्स पवर मे करती हूँ, शायद कुछ चमत्कार हुआ होगा की मैं आज इस बच्चे को अपने पास बैठा, जीता जागता, और हंसता देख पा रही हूँ , मैने ये सोचा.
पर नही. चमत्कार कुछ नही होता. और होता भी है तो कोशिश के बिना नही होता.
एक दिन माँ कमरे मे आई, बेटा साँस ले रहा था और साँसें छोड़ रहा था. सबकी तरह. ज़िंदगी मे एक अत्यंत मामूली सी चीज़ सीखा कर उसकी माँ ऐसे खुश हुई जैसे दुनिया की कौन सी बड़ी परीक्षा पास कर ली हो. जब उन्होने बच्चे से पूछा की कैसे याद रखा तो बच्चे ने बताया की कल जब माँ इतने दिन से उसके नही सीखने के कारण, दुखी हो रही थी, और हिम्मत हार रही थी, और फिर से बच्चे को बोल रही थी की देखो ऐसे, ऐसे लेनी हैं साँसे. बच्चा जानता था की अभी थोड़ी देर के बाद सब फिर भूल जाएगा और माँ को फिर से पढ़ाना पड़ेगा. ज़िंदगी ऐसे तो नही ज़ीनी है ना मुझे. मुझे खुद के दम पर याद रखना है. हर छोटी बातें. हर नयी बात. क्या उपाय हो की दिमाग़ याद रख ले ये एक छोटी बात. पर दिमाग़ ने हाथ खड़े कर दिए. पर बच्चा अपने विल पवर से एक सल्यूशन ढूँढ लाया. ऐसा सल्यूशन जिसने उसकी ज़िंदगी बदल दी. और ये कोई भगवान के मंदिर मे नही मिला. किसी ने तरस ख़ाके नही दिया. बार, बार, महीनों तक कोशिश करते वक्त, उसके ही दिमाग़ मे कहीं ये खटका की कोई तो उपाय हो सकता है.
बड़ा मामूली उपाय. पर इतना मामूली की नज़र ना आने वाला उपाय. पॉकेट मे रखी छोटी डाइयरी.
कल बच्चे ने माँ जब सीखा रही थी, तो लिख डाला इस बात को. “साँस लेनी है मुझे. पहले साँस ऐसे खिचनी है. फिर ऐसे छोड़नी है. ऐसे ही मुझे लगातार साँस लेनी है. वरना माँ हार जाएँगी.” और डाइयरी हान्थ मे बाँधके मे रख के सो गया. वरना दूसरे दिन डाइयरी ही भूल जाता. उठते ही डाइयरी सामने थी, खोला. और खोलते ही कल लिखी बात याद आ गई. अरे हाँ , साँस लेनी है मुझे. वरना मर जाऊँगा. और साँसे लेने लगा. और इस तरह, चलना कैसे है, ये याद रखा. खाना चबाना कैसे है, ये याद रखा. और देखते ही देखते, इस एक छोटे सल्यूशन ने मोबाइल का रूप ले लिया. हर एक बात, मोबाइल मे फटाफट उसी वक्त लिख डालता. रास्ते, रंग, कपड़ों की डीटेल, हर कुछ. और मोबाइल उसकी याददास्त बन गयी.
जब मैं इस बच्चे से मिली, तो ये अमेरिका से दूर, इंडिया मे मेरे साथ काम सीखने आया था. एक्स्सेल सीख चुका था. फोटॉशप, desigining, वर्ड, सब कुछ सीख चुका था. और माशा अल्लाह, क्या लिखता था! मैने उसे Archies के साथ इंटेर्नशिप करने की सलाह दी. खेर, वो इंटेर्नशिप तो उसको नही मिल पाई. लेकिन आज वो बच्चा एक entreprenuer है और 5 लोगों को नौकरी दे रखी है. 5 घरों मे खाना इसलिए बन पाता है की एक बच्चा साँसे ले पा रहा और साँसें छोड़ पा रहा है. ये एक छोटी बात उसने मोबाइल और डाइयरी जैसी मामूली सल्यूशन्स से याद रखी है.
उस बच्चे को मिलने के बाद मुझे याद आया की बहुत ब्रिलियेंट स्टूडेंट होने के कारण एक छोटी से छोटी हार भी मुझे चुभ जाती थी. क्लास का एक मामूली क्विज़ ही क्यूँ ना हो, मुझे तो बस टॉप ही करने की आदत है. अगर एक नंबर भी कम आ गया तो पहाड़ सर पर उठा कर कई रोज़ भगवान को बैठ के हेट मेल लिखने का सोचती थी. कई बार जब हम दुखी होते हैं तो लगता है सब बेकार है. कोशिश ही क्यूँ करें. इतना दर्द, इतनी उम्मीदों का टूटना कौन झेले. पर अब जब भी डर लगता है, तो इस बच्चे को याद करती हूँ.
अगर आपको सही लगे तो इस वक्त आप उस बच्चे को याद कीजिएगा. एक सब कुछ भूल कर, दिमाग़ का सपाट बच्चा. हर दिन कोशिश करता है की हर अगली इन्फर्मेशन याद रह पाए. कहीं घर का रास्ता ना भूल जाए. कही साँसें लेना ना भूल जाए. हर दिन कोशिश करता है, की इस सल्यूशन को सल्यूशन की तरह देखे. दुखी ना हो. और जीतता है अपनी कोशिश मे. किसी को दिखाने के लिए नही. अपनी ज़िंदगी जीने के लिए. क्यूंकी वो मरना नही चाहता. जीना चाहता है.
जब मैने बातें ख़तम की तो लगा की मैं दूसरी दुनिया मे पहुँच गयी. जिन छोटी से छोटी शारीरिक शक्तियों को हम सब use करने के इतने आदी हो चुकें है, की दिमाग़ को शायद ही कोई एफर्ट लगाना पड़ता है. वो एक- एक शक्ति किसी के लिए हर दिन एक नयी कोशिश है. कितना अंतर था मुझमे और इस बच्चे मे. सल्यूशन्स ढूँढने का. ज़िंदादिली का. लोगों के हंस देने के बावजूद, लोगों के उसका हौसला तोड़ देने के बावजूद, जीने का. कुछ बनने का. कुछ कर दिखाने का, कोशिश करने की जीवट इच्छा का. सपने देखने का. सिर्फ़ इस लिए की कल किसी को उसको याद ना कराना पड़े की बेटा साँस लो, साँस छोड़ो.
विकलांगता को लेके कई लड़ाइयाँ लड़ी जा रही हैं. और उन सबकी सबसे पहली माँग ये है की विकलांगता को किसी “आदर्श”/”दिव्य”/दर्दनाक/ बदक़िस्मती की तरह नही बल्कि जैसे वो है, वैसे ही प्रस्तुत किया जाए. उनकी अपनी परेशानियों हैं जिन्हे ROSEY बनाने की ज़रूरत नही है. ज़रूरत है इंक्लूसिव बनने की. सड़क से लेकर website बनाते वक्त यह सोचने की कि मेरी यह website, सड़क या मेरा यह मकान क्या ज़्यादा से ज़्यादा विकलांगताओं के लिए इंक्लूसिव है? क्या यहाँ एक वीलचेर प्रयोग करने वाला व्यक्ति या सेरेब्रल पॉल्ज़ी वाला व्यक्ति आराम से आ-जा सकता है? क्या यहाँ speech-recognition यूज़र, स्क्रीन reader यूज़र आराम से पढ़ सकता है? लिख सकता है? ज़रूरत है दया नही, बड़े बड़े बड़ाईयों के जयकारे नही, बल्कि एक आम आदमी के “बराबर” इज़्ज़त देने की. ये लेख उस विचार से पूरी तरह सहमति रखता है. और किसी भी प्रकार यह नही कहना चाहता की “जब वो विकलांग होकर ये कर सकता/ सकती है, तो आप और मैं जैसे “नॉर्मल लोग” क्यूँ नही?! आख़िर, हम सब एक temporarily-abled बॉडीस ही तो हैं. विकलांगता कोई सेपरेट केटेगरी नही है.) यह लेख किसी व्यक्ति विशेष नही, बल्कि उस जिजीविसा को सलाम करता है, उस लगन, लक्ष के प्रति संपूर्ण समर्पण, और आगा पीछा ना देखते-सोचते हुए खुद को झोंक देने की शक्ति से प्रेरणा लेना और देना चाहता है. यह जिजीविसा किसी मे भी हो सकती है. क्या आपमे है?
Read the Author’s previous Article Here(मेरा पढ़ता-लिखता-सीखता, Deaf-Blind, ना बोल सकने वाला, दोस्त)
Did you like the Article? If yes, please give your feedback in the comments section below. This will encourage the Author 🙂
Discover more from Free UPSC IAS Preparation For Aspirants
Subscribe to get the latest posts sent to your email.