भारत-आसियान संबंध : सहयोग और चुनौतियाँ – बिंदुवार व्याख्या
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ब्रुनेई और सिंगापुर की हालिया यात्रा का उद्देश्य भारत-आसियान संबंधों को नई गति देना है। भारत एशिया और दुनिया में भारत की सबसे मूल्यवान साझेदारियों में से एक को फिर से स्थापित करने के लिए ठोस प्रयास कर रहा है। इस साल की शुरुआत में, दिल्ली ने मलेशिया और वियतनाम के प्रधानमंत्रियों की मेजबानी की थी और विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने आसियान के कई विदेश मंत्रियों से मुलाकात की थी और दिल्ली में उनका स्वागत किया था। इन व्यस्तताओं ने एक बार फिर आसियान क्षेत्र में दिल्ली के लिए असाधारण सद्भावना और भारत से उच्च उम्मीदों को प्रदर्शित किया है।

India ASEAN Relations
Source- Indian Express
कंटेंट टेबल
भारत-आसियान देशों के संबंधों का इतिहास क्या रहा है?

भारत और आसियान देशों के बीच सहयोग के क्षेत्र क्या रहे हैं?

भारत-आसियान संबंधों में चुनौतियाँ क्या हैं?

आगे का रास्ता क्या होना चाहिए?

भारत-आसियान देशों के संबंधों का इतिहास क्या रहा है?

दक्षिण पूर्व एशिया के साथ भारत के संबंध दो सहस्राब्दियों से भी अधिक पुराने हैं। यह संबंध शांति और मित्रता, धर्म और संस्कृति, कला और वाणिज्य, भाषा और साहित्य द्वारा स्थापित है।

प्रारंभिक वर्षों की भागीदारी (Initial Years of engagement)भारत-आसियान देशों के बीच औपचारिक जुड़ाव 1992 में ‘सेक्टोरल डायलॉग पार्टनर’ (सचिव स्तरीय बातचीत) के रूप में शुरू हुआ। साझेदारी को 1995 में ‘डायलॉग पार्टनर’ के रूप में स्थापित किया गया था, जिसमें विदेश मंत्री के स्तर पर बातचीत शामिल थी। साझेदारी को 2002 में शिखर स्तर तक बढ़ाया गया था।
रणनीतिक साझेदारी का युग

(Era of Strategic Partnership)

भारत और आसियान के बीच 20 साल के संबंधों का जश्न मनाने वाली स्मारक शिखर बैठक में, साझेदारी को रणनीतिक साझेदारी तक बढ़ाया गया। नई दिल्ली (जनवरी 2018) में 25-वर्षीय स्मारक शिखर सम्मेलन के दौरान, भारत और आसियान इस बात पर सहमत हुए कि हमारी रणनीतिक साझेदारी समुद्री क्षेत्र में सहयोग बनाने पर केंद्रित होगी।
व्यापक रणनीतिक साझेदारी

(Comprehensive Strategic Partnership)

वर्ष 2022 आसियान-भारत संबंधों के 30 वर्षों का प्रतीक है, और वर्ष को भारत-आसियान देशों की मित्रता के वर्ष के रूप में नामित किया गया है। आसियान-भारत वार्ता संबंधों की 30वीं वर्षगांठ मनाने के लिए 19वें आसियान-भारत शिखर सम्मेलन में रणनीतिक भागीदारी को व्यापक रणनीतिक साझेदारी तक बढ़ाया गया था। इस अवसर पर ‘आसियान-भारत व्यापक रणनीतिक साझेदारी पर संयुक्त वक्तव्य’ जारी किया गया।

भारत और आसियान देशों के बीच सहयोग के क्षेत्र क्या रहे हैं?

आसियान के साथ भारत का जुड़ाव तीन लक्ष्यों से प्रेरित है-

(i) भारत और आसियान के बीच कनेक्टिविटी बढ़ाना (यानी भौतिक, डिजिटल, लोगों से लोगों के बीच)।

(ii) आसियान संगठन को मजबूत करना और;

(iii) समुद्री क्षेत्र में व्यावहारिक सहयोग का विस्तार करना।

 भू-राजनीतिक सहयोग (Geopolitical Cooperation)

  1. आसियान के साथ भारत का जुड़ाव एक बहु-स्तरीय संपर्क प्रक्रिया है।
एपेक्स इंटरैक्शन

(Apex Interaction)

भारत और आसियान के बीच वार्षिक शिखर सम्मेलन, जैसे आसियान-भारत शिखर सम्मेलन।
समर्थन बैठकें

(Support Meetings)

आसियान-भारत विदेश मंत्रियों की बैठक (AIFMM) जैसी विदेश मंत्री स्तर की बैठकें।
वरिष्ठ स्तर की बैठकें

(Senior Level Meetings)

AISOM जैसे वरिष्ठ स्तर के अधिकारियों के बीच नियमित बातचीत होती है जो AIFMM और AI शिखर सम्मेलन से पहले होती है।
  1. भारत ‘आसियान के नेतृत्व की समूह में शामिल है – आसियान की अध्यक्षता वाले बहुपक्षीय मंच। भारत नियमित रूप से पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (EAS), आसियान क्षेत्रीय मंच (ARF), आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक+ (ADMM+) और विस्तारित आसियान समुद्री मंच (EAMF) की बैठकों और इसकी सहायक प्रक्रियाओं में भाग लेता है।

भू-रणनीतिक सहयोग (Geostrategic cooperation)

  1. व्यापक रणनीतिक साझेदारी (Comprehensive Strategic Partnership) समुद्री सहयोग पर विशेष ध्यान देने के साथ यह रिश्ता एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी में विकसित हुआ है।
  2. संयुक्त पहल (Joint Initiatives) भारत और आसियान ने विभिन्न सहयोगी परियोजनाओं का समर्थन करने के लिए आसियान-भारत सहयोग कोष और आसियान-भारत विज्ञान और प्रौद्योगिकी विकास कोष जैसे तंत्र स्थापित किए हैं।

भू-आर्थिक सहयोग (Geo-Economic Cooperation)

  1. व्यापार संबंध (Trade Relations)आसियान भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, जिसका द्विपक्षीय व्यापार लगभग 70 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है। भारत ने हाल ही में 2009 में माल में एक मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर हस्ताक्षर किए और 2014 में सेवाओं और निवेश को शामिल करने के लिए इस समझौते का विस्तार किया।
  2. कमोडिटी व्यापार (Commodities Trade) भारत और आसियान क्षेत्र के बीच कमोडिटी व्यापार अप्रैल 2021-मार्च 2022 में 110.39 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है, जिसमें आसियान को 42.327 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निर्यात और आसियान से 68.07 बिलियन अमेरिकी डॉलर का आयात शामिल है। यह पहली बार है कि आसियान के साथ द्विपक्षीय व्यापार 100 अरब को पार कर गया है।
  3. परामर्श तंत्र (Consultation Mechanisms) आसियान आर्थिक मंत्री-भारत परामर्श (AEM + भारत) और आसियान-भारत व्यापार परिषद (AIBC) भारत और आसियान क्षेत्र के बीच व्यापक आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देते हैं।
  4. निवेश पहल (Investment Initiatives) 2000-2019 के बीच, आसियान से भारत में संचयी FDIs 117.88 बिलियन डॉलर था। हालाँकि, इसका मुख्य कारण भारत में सिंगापुर का निवेश ($115 बिलियन) है।

कनेक्टिविटी सहयोग (Connectivity Cooperation)

  1. बुनियादी संरचना परियोजनाएं (Infrastructure Projects)- भारत-आसियान संबंधों की विशेषता प्रमुख पहलों से है, जिसमें भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग और कलादान मल्टीमॉडल परियोजना शामिल हैं। इसका उद्देश्य भारत और आसियान देशों के बीच परिवहन संबंधों में सुधार करना, विशेष रूप से पूर्वोत्तर भारत तक पहुंच बढ़ाना है।

सांस्कृतिक और सामाजिक सहयोग (Cultural and Social Cooperation)

  1. शैक्षिक आदान-प्रदान (Educational Exchanges)– भारतीय संस्थानों में आसियान छात्रों के लिए छात्रवृत्ति और विभिन्न सांस्कृतिक आदान-प्रदान जैसे कार्यक्रम लोगों से लोगों के संबंधों को मजबूत करते हैं।
  2. क्षमता निर्माण (Capacity Building)– भारत और आसियान के बीच सहयोगात्मक प्रयासों में विभिन्न क्षेत्रों में क्षमता निर्माण शामिल है। यह सामाजिक विकास कार्यक्रमों में युवाओं और महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देता है।

भारत-आसियान संबंधों में चुनौतियाँ:

  1. भू-राजनीतिक चिंताएं (Geopolitical concerns)- अमेरिका-चीन संघर्ष के तेज होने और बीजिंग के साथ दिल्ली की अपनी गहराती परेशानियों के साथ जटिल क्षेत्रीय वातावरण, संबंधों के लिए एक प्रमुख भू-राजनीतिक चिंता है। इसके अलावा, नव पुनर्जीवित क्वाड की भारत की सदस्यता ने भी इस क्षेत्र में चिंताओं को उठाया है।
  2. भू-रणनीतिक चुनौतियां (Geostrategic Challenges)- दक्षिण चीन सागर विवाद जैसे क्षेत्रीय विवादों में आसियान सदस्य राज्यों का उलझाना, आसियान के साथ भारत की भागीदारी को जटिल बनाता है, क्योंकि भारत इस क्षेत्र में स्थिरता को बढ़ावा देते हुए इन विवादों को नेविगेट करना चाहता है।
  3. आर्थिक चिंताएं (Economic Concerns)

a) RCEP से बाहर निकलना (Walking out of RCEP)ग्यारहवें घंटे में व्यापार उदारीकरण (RCEP) पर क्षेत्रीय वार्ता से बाहर निकलने के दिल्ली के फैसले ने आसियान सदस्यों के लिए आर्थिक निराशा की भावना पैदा की है।

b) बढ़ता व्यापार असंतुलन (Growing Trade Imbalances)भारत आसियान के साथ बढ़ते व्यापार घाटे का सामना कर रहा है, जिसमें चीन आसियान देशों के लिए सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। कार्यान्वयन, सीमा शुल्क प्रक्रियाओं और गैर-टैरिफ बाधाओं से संबंधित मुद्दों के कारण भारत-आसियान व्यापार में धीमी प्रगति हुई है।

c) कनेक्टिविटी परियोजनाओं का धीमा कार्यान्वयन (Slow Implementation of Connectivity Projects)चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के विपरीत भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग परियोजनाओं पर धीमी प्रगति हुई है, जिसने कुछ आसियान देशों के बीच लोकप्रियता हासिल की है।

d) व्यापार और निवेश बाधाएं (Trade and Investment Barriers)गैर-टैरिफ बाधाएं, जैसे जटिल सीमा शुल्क प्रक्रियाएं और असंगत विनियम, भारत और आसियान देशों के बीच सुचारू व्यापार और निवेश प्रवाह में बाधा डालते हैं।

आसियान के भीतर आंतरिक विभाजन

म्यांमार पर अलग-अलग प्रतिक्रियाएँ (Differing Responses to Myanmar) म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के कारण आसियान सदस्यों के बीच अलग-अलग प्रतिक्रियाएँ हुई हैं और सामूहिक कार्रवाई जटिल हो गई है। यह विभाजन भारत के लिए म्यांमार में क्षेत्रीय स्थिरता और लोकतांत्रिक बहाली के संबंध में अपनी नीतियों को आसियान के साथ संरेखित करना कठिन बना देता है।व्यापार और निवेश बाधाएं- गैर-टैरिफ बाधाएं, जैसे जटिल सीमा शुल्क प्रक्रियाएं और असंगत विनियम, भारत और आसियान देशों के बीच सुचारू व्यापार और निवेश प्रवाह में बाधा डालते हैं।

आगे की रास्ता क्या होना चाहिए?

  1. भूराजनीतिक चिंताओं का निवारण (Redressal of Geopolitical concerns)भारत को क्षेत्रीय सुरक्षा ढांचे में आसियान के पीछे अपनी स्थिति पर फिर से जोर देना चाहिए। आसियान को आश्वस्त करने के दिल्ली के प्रयासों में कुछ हद तक सफलता मिली है, जिससे क्षेत्र भारत के साथ अधिक रक्षा और सुरक्षा सहयोग के लिए खुल गया है।
  2. उभरते क्षेत्रों पर ध्यान दें (Focus on emerging areas)भारत को क्षेत्रीय संबंधों को मजबूत करने के लिए डिजिटलीकरण, स्वास्थ्य, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और उन्नत विनिर्माण जैसे नए क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर भी ध्यान देना चाहिए।
  3. सेमीकंडक्टर कूटनीति (Semiconductor Diplomacy) मलेशिया और सिंगापुर के साथ भारत की ‘सेमीकंडक्टर कूटनीति’, दोनों में सेमीकंडक्टर उत्पादन में महत्त्वपूर्ण क्षमताएँ हैं, आसियान को अन्य सदस्य देशों के साथ विस्तारित किया जाना चाहिये।
  4. त्वरित बुनियादी ढांचा विकास (Accelerated Infrastructure Development) भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग और कलादान मल्टीमॉडल परियोजना जैसी प्रमुख कनेक्टिविटी परियोजनाओं में तेजी लाने से व्यापार और लोगों से लोगों के बीच संपर्क में और वृद्धि होगी।
  5. उन्नत व्यापार समझौते (Enhanced Trade Agreements) आसियान-भारत मुक्त व्यापार समझौते (FTA) के दायरे और प्रभावशीलता का विस्तार व्यापार असंतुलन को दूर करने और गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करने में मदद कर सकता है।
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