भारत में शहरी जैव विविधता : महत्व और चुनौतियाँ- बिंदुवार व्याख्या
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भारत में शहरी जैव विविधता तेजी से हो रहे शहरीकरण और पर्यावरण क्षरण से जुड़े विभिन्न कारकों के कारण महत्वपूर्ण नुकसान का सामना कर रही है। कभी सही मायनों में ‘भारत का गार्डन सिटी’ कहलाने वाला बेंगलुरु अब कंक्रीट का शहर बनता जा रहा है। शहर के परिवर्तन के कारण शहरी जंगल, बाग-बगीचे और कृषि क्षेत्र नष्ट हो गए हैं। इनकी जगह कंक्रीट की संरचनाएं ले ली हैं, जिससे इसकी स्थानीय जैव विविधता पर गंभीर असर पड़ रहा है। शहरी जैव विविधता के नुकसान के ऐसे ही मामले दिल्ली, हैदराबाद और मुंबई जैसे शहरी शहरों में भी देखे गए हैं।

इस लेख में, हम देखेंगे कि शहरी जैव विविधता क्या है, शहरी जैव विविधता को बनाए रखने का महत्व, शहरी जैव विविधता को बनाए रखने में चुनौतियां, इसके लिए पहल और भारत में शहरी जैव विविधता को बनाए रखने में आगे का रास्ता क्या होना चाहिए।

Urban Biodiversity
Source- Indian Express
कंटेंट टेबल
शहरी जैव विविधता क्या है? भारत में सुव्यवस्थित शहरी जैव विविधता के उदाहरण कौन-कौन से हैं?

शहरी जैव विविधता के संरक्षण की क्या आवश्यकता है?

सुव्यवस्थित शहरी जैव विविधता के क्या लाभ हैं?

शहरी क्षेत्रों में हरित क्षेत्र बढ़ाने के लिए भारत द्वारा क्या पहल की गई है?

आगे की रास्ता क्या होनी चाहिए?

शहरी जैव विविधता क्या है? भारत में सुव्यवस्थित शहरी जैव विविधता के उदाहरण कौन-कौन से हैं?

शहरी जैव विविधता- शहरी जैव विविधता शहरी क्षेत्रों में पाए जाने वाले पौधों, जंतुओं और सूक्ष्मजीवों सहित जीवित जीवों की विविधता और शहरी वातावरण के भीतर उनकी अंतर्संबंध को संदर्भित करती है। इसमें शहरों और उनके आसपास पाए जाने वाले आनुवंशिक, प्रजातियों और पारिस्थितिकी तंत्र की विविधता शामिल है।

भारत में सुव्यवस्थित शहरी जैव विविधता के उदाहरण

चेन्नईपल्लीकरनई मार्श जैसी अपनी आर्द्रभूमियों को पुनर्स्थापित करने और बनाए रखने के चेन्नई के प्रयासों से जैव विविधता में वृद्धि हुई है। ये आर्द्रभूमियाँ विभिन्न पक्षी प्रजातियों, उभयचरों और जलीय पौधों को आवास प्रदान करती हैं। इसने शहरी परिदृश्य के पारिस्थितिक संतुलन में योगदान दिया है।
दिल्लीदिल्ली रिज (Delhi Ridge) शहर के लिए एक ग्रीन हार्ट के रूप में कार्य करता है, जो विविध वनस्पतियों और जीवों का समर्थन करता है। इस क्षेत्र की रक्षा और वृद्धि की पहल ने शहरी दबावों के बीच पक्षियों और स्तनधारियों सहित विभिन्न देशी प्रजातियों को बनाए रखने में मदद की है।
मुंबईमुंबई में शहर की सीमा के भीतर एक समृद्ध जैव विविधता संरक्षित वन, संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान है। इसके अलावा, मैंग्रोव और लवणीय आद्र्भूमि सहित इसके तटीय क्षेत्रों को उनकी जैव विविधता के लिए पहचाना गया है।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुव्यवस्थित शहरी जैव विविधता के उदाहरण

सिंगापुरसिंगापुर का व्यापक हरित बुनियादी ढांचा, वर्टीकल गार्डन, ग्रीन रूफ (green roofs) और पार्क पौधों और जंतुओं की प्रजातियों की समृद्ध विविधता का समर्थन करते हैं। सिंगापुर शहरी जैव विविधता के लिए एक मॉडल प्रस्तुत करता है।
मेडेलिनकोलम्बिया के मेडेलिन में हरित गलियारों का एक नेटवर्क बनाया गया है जिससे शहर में स्वच्छ वायु और तापमान में दो डिग्री की गिरावट आई।
वैंकूवरवैंकूवर ने अपने प्राकृतिक क्षेत्रों की रक्षा और जैव विविधता को बढ़ावा देने के लिए नीतियां लागू की हैं।

 शहरी जैव विविधता के संरक्षण की क्यों आवश्यकता है?

  1. अत्यधिक कार्बन उत्सर्जन (Increased Carbon Emissions) – WEF की रिपोर्ट के अनुसार, शहर वैश्विक अर्थव्यवस्था में लगभग 80% योगदान देते हैं, लेकिन वे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में लगभग तीन-चौथाई योगदान देते हैं। उदाहरण के लिए- दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु के शहरी क्षेत्रों से अत्यधिक ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन हुआ है।
  2. जैव विविधता क्षति के कारण आर्थिक प्रभाव (Economic Impact due to biodiversity Loss) – WEF रिपोर्ट के अनुसार, शहरों में वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 44% ($ 31 ट्रिलियन) जैव विविधता क्षति से व्यवधान का खतरा होने का अनुमान है।
  3. सूक्ष्म जलवायुऔर शहरी ऊष्मा द्वीपों (UHI) का निर्माण (Creation of ‘Micro-Climates’ and Urban Heat Islands (UHI) – हरित आवरण के नुकसान के परिणामस्वरूप वाष्पीकरणीय शीतलन की क्षमता में कमी आती है और शहरी वातावरण में संग्रहीत सकल ऊष्मा में वृद्धि होती है। इसके परिणामस्वरूप शहरी ऊष्मा द्वीपों (UHI) का विकास होता है, जिससे शहरी परिदृश्य में और उसके आसपास एक अजीब ‘सूक्ष्म जलवायु’ विकसित होती है। उदाहरण के लिए- भारत में थर्मल और शहरी हीट वेव की संकट।
  4. आपदा लचीलेपन में कमी (Decrease in disaster resilience) – अनियोजित, विस्फोटक और अवैज्ञानिक कंक्रीट विकास के कारण आवश्यक शहरी पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचा है, जिससे भारत के शहरी शहरों की प्राकृतिक आपदा प्रबंधन क्षमता पर गंभीर असर पड़ा है। उदाहरण के लिए, 2015 की चेन्नई बाढ़ शहर की प्राकृतिक आर्द्रभूमि के नुकसान के कारण और भी विकराल हो गई थी।

सुव्यवस्थित शहरी जैव विविधता के क्या लाभ हैं?

पारिस्थितिक लाभ

  1. शहरी ऊष्मा द्वीप प्रभाव का न्यूनीकरण (Mitigation of Urban Heat Island effect)- शहरी वनस्पतियां वायु को ठंडा और स्वच्छ करके, धुंध, जमीनी स्तर के ओजोन और ग्रीनहाउस प्रभाव को कम करता है और वायु की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद कर सकती हैं। वे शहरों को हरित वातावरण प्रदान करके ऊष्मा द्वीप प्रभाव को कम करने में मदद कर सकता है।
  2. कार्बन पृथक्करण (Carbon Sequestration)- शहरी वन वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करके भारी मात्रा में कार्बन पृथक् करने में मदद करते हैं।
  3. जैव विविधता में वृद्धि (Increase in Biodiversity)– शहरी क्षेत्रों में मौजूद पेड़ और जंगल कई महत्वपूर्ण जंतुओं, विशेषकर पक्षियों को आश्रय और आवास प्रदान करते हैं।
  4. शहरी हाइड्रोलॉजिकल साईकल का प्रबंधन (Management of Urban Hydrological Cycle)– शहरी वन जल प्रावधान, विनियमन, पुनर्भरण और फ़िल्टरिंग भूमिका के माध्यम से शहरी क्षेत्रों में और उसके आसपास जल प्रबंधन का समर्थन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

सामाजिक लाभ

  1. अनियोजित शहरीकरण को रोकना (Checking Haphazard Urbanization)- शहरी वन तीव्र एवं अनियोजित शहरीकरण को रोकने में मदद करते हैं; तथा शहर की सीमाओं एवं औद्योगिक स्थानों का सीमांकन करके मलिन बस्तियों के विकास को रोकते हैं।
  2. सौंदर्य संबंधी लाभ (Aesthetic Benefits)- शहरी पेड़ आवासीय सड़कों और सामुदायिक पार्कों की सौंदर्य गुणवत्ता को बढ़ाकर शहर की सुंदरता और पर्यावरण की गुणवत्ता को बढ़ाते हैं। उदाहरण के लिए हैदराबाद को ‘वर्ल्ड ग्रीन सिटी अवार्ड 2022’ से सम्मानित किया गया।
  3. मानसिक सतर्कता में सुधार और तनाव को कम करता है (Improves Mental Alertness And Reduce Stress)- हरित क्षेत्र तनाव को कम करते हैं और शहरी निवासियों के लिए शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार करते हैं जबकि लोगों को पारस्परिक व्यवहार के लिए स्थान प्रदान करते हैं। हरे-भरे पार्क शहरी आबादी को व्यस्त, थकाऊ, प्रायः पुनरावर्ती और कष्टसाध्य नियमित कार्यों से राहत भी प्रदान करते हैं।
  4. सांस्कृतिक उत्थान (Cultural Regeneration)- शहरी हरित क्षेत्र स्थानीय त्योहारों, नागरिक समारोहों, राजनीतिक समारोहों और नाट्य प्रदर्शनों के लिए स्थान उपलब्ध कराकर सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ाने में मदद करते हैं। उदाहरण के लिए, बिहार के शहरी केंद्रों में वट-सावित्री पूजा का आयोजन।

आर्थिक लाभ

  1. अचल संपत्ति की कीमतें (Real estate prices)- पेड़ों के साथ भूनिर्माण – यार्डों में, पार्कों और ग्रीनवे में, सड़कों के किनारे, और शॉपिंग सेंटरों में – संपत्ति के मूल्य वृद्धि और वाणिज्यिक लाभ प्रदान करने में मदद करता है।
  2. रोजगार (Employment)- शहरी वनों में वृक्षारोपण और रखरखाव श्रम गहन है और शहरी गरीबों के लिए रोजगार के अवसर प्रदान करता है।
  3. ऊर्जा की खपत में कमी (Reduction of energy consumption)- शहरी वन भवनों में एयर-कंडीशनिंग (AC) की मांग को कम करने तथा ऊर्जा खपत को कम करने में महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करते हैं।

शहरी क्षेत्रों में हरित आवरण बढ़ाने के लिए भारत द्वारा क्या पहल की गई हैं?

नगर वन उद्यान कार्यक्रम

(Nagar Van Udyan Program)

इस पहल का उद्देश्य पूरे भारत में 200 नगर वन (शहर वन) विकसित करना है। यह इन शहरी वनों को स्थापित करने और बनाए रखने के लिए स्थानीय समुदायों, शैक्षणिक संस्थानों और संगठनों को शामिल करने पर केंद्रित है।
स्मार्ट सिटी मिशन

(Smart Cities Mission)

स्मार्ट सिटीज मिशन के तहत, कई शहरों ने अपने शहरी नियोजन के हिस्से के रूप में ग्रीन आवरण में वृद्धि को शामिल किया है।
हरित भारत के लिए राष्ट्रीय मिशन

(National Mission for Green India)

यह मिशन जलवायु परिवर्तन के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) का हिस्सा है और इसका उद्देश्य वन आवरण की गुणवत्ता को बढ़ाना और शहरी क्षेत्रों में वृक्षावरण को बढ़ाना है।
शहरी वनीकरण कार्यक्रम

(Urban Afforestation Programs)

विभिन्न राज्य और स्थानीय सरकारों ने शहरों में वृक्षों के आवरण को बढ़ाने के उद्देश्य से शहरी वनीकरण कार्यक्रम शुरू किए हैं। उदाहरण के लिए- पुणे की शहरी वन उद्यान परियोजना और भारत में मियावाकी पद्धति का कार्यान्वयन।
शहरी हरियाली दिशानिर्देश

(Urban Greening Guidelines)

आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) ने शहरी हरियाली संबंधी दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जो शहरी नियोजन में हरित स्थानों के लिए मानकों की रूपरेखा तैयार करते हैं। (शहरी क्षेत्रों में न्यूनतम हरित आवरण 12% से 18% तक होना चाहिए)

 आगे का रास्ता क्या होना चाहिए?

  1. शहरों के नियोजन निर्णयों में प्रकृति का पुनः एकीकरण (Reintegration of nature in the planning decisions of the cities)- शहरों को अपने नियोजन निर्णयों में प्रकृति को फिर से शामिल करना चाहिए। उदाहरण के लिए – प्राकृतिक आवासों का संरक्षण, समुदाय आधारित वृक्षारोपण के माध्यम से बंजर भूमि को पुनः प्राकृतिक बनाना।
  2. देशी पौधों का पुनरुत्पादन (Reintroduction of native plants)- वनों की सुरक्षा और देशी पौधों और जीवों का पुनरुत्पादन मूल पारिस्थितिक तंत्र की बहाली को प्रोत्साहित करने में मदद करता है।
  3. प्रणाली दृष्टिकोण (Systems approach)- शहरों को शहरी प्रशासन के लिए एक ‘प्रणाली दृष्टिकोण’ अपनाना चाहिए जो सभी हितधारकों की जरूरतों पर विचार करता है और प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र के मूल्य को ध्यान में रखता है।
  4. हरित गलियारों का विकास (Development of green corridors)- शहरी क्षेत्रों में मियावाकी पद्धति के माध्यम से हरित गलियारों के निर्माण से जलवायु परिवर्तन शमन के लाभों को प्राप्त करने में मदद मिलेगी। उदाहरण के लिए- कोलंबिया के मेडेलिन में हरित गलियारों का नेटवर्क।
  5. निवेश आकर्षित करना (Attracting investments)- हमें प्रकृति को वित्तीय बाजारों के लिए एक आकर्षक निवेश बनाने तथा शहरों की प्राकृतिक पूंजी में निजी वित्तपोषण को बढ़ावा देने के लिए पहल करनी होगी।
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