सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र : महत्व और चुनौतियां – बिंदुवार व्याख्या
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हाल ही में प्रस्तुत केंद्रीय बजट 2024-25 की सामाजिक क्षेत्र, विशेष रूप से सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र पर अपर्याप्त ध्यान देने के लिए आलोचना की गई है। इस साल की शुरुआत में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने स्वास्थ्य देखभाल व्यय में वृद्धि के पीछे एक मजबूत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की कमी के कारण चिंता जताई थी।

इस लेख में, हम सार्वजनिक स्वास्थ्य और भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र  के संरचना के बारे में देखेंगे। हम भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों पर भी गौर करेंगे। इसके अलावा, हम भारत में एक मजबूत सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र के महत्व और इसे प्राप्त करने के तरीकों पर चर्चा करेंगे।

Source- WHO

कंटेंट टेबल
सार्वजनिक स्वास्थ्य क्या है? भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र की संरचना क्या है?

भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र के विकास के लिए कौन सी सरकारी पहल शुरू की गई हैं?

भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में मौजूदा चुनौतियाँ क्या हैं?

भारत में मजबूत सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र के क्या फायदे हैं?

आगे का रास्ता क्या होना चाहिए?

सार्वजनिक स्वास्थ्य क्या है? भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र की संरचना क्या है?

सार्वजनिक स्वास्थ्य (Public Health)– WHO के अनुसार, “सार्वजनिक स्वास्थ्य उन सभी संगठित उपायों को संदर्भित करता है जो बीमारी को रोकने, स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और सम्पूर्ण आबादी के जीवन प्रत्याशा बढ़ाने के लिए किए जाते हैं। इसके कार्य इस बात पर केंद्रित होते हैं कि लोगों को स्वस्थ परिस्थितियाँ प्रदान की जाएं और यह सम्पूर्ण आबादी पर ध्यान केंद्रित करता है, न कि व्यक्तिगत मरीजों या बीमारियों पर।”

सार्वजनिक स्वास्थ्य का वर्गीकरण (Categorisation of Public Health)- सार्वजनिक स्वास्थ्य आवश्यकताओं को मोटे तौर पर तीन समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है।

गरीबों और कमजोर लोगों द्वारा सामना की जाने वाली बीमारियों से सुरक्षा इसमें क्षयरोग, मलेरिया, अल्पपोषण, मातृ मृत्यु, भोजन और पानी से होने वाले संक्रमणों के कारण टाइफाइड, हेपेटाइटिस और दस्त रोगों जैसी बीमारियां शामिल हैं। इनका सामना गरीबों और कमजोर लोगों द्वारा किया जाता है।
मध्यम वर्ग द्वारा सामना की जाने वाली पर्यावरणीय मुद्दों से संबंधित बीमारियों से सुरक्षा इसमें हवा, पानी, अपशिष्ट प्रबंधन, जल निकासी सुविधा की कमी, स्वस्थ भोजन और भोजनालयों को सुनिश्चित करने में विफलता, सड़क यातायात दुर्घटनाएं, जलवायु परिवर्तन और दीर्घकालिक बीमारियों का उदय शामिल है।
उपचारात्मक सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल किसी आबादी की उपचारात्मक देखभाल की ज़रूरतें सार्वजनिक स्वास्थ्य में सबसे लोकप्रिय ज़रूरतें हैं। उपचारात्मक देखभाल का प्रावधान सार्वजनिक स्वास्थ्य में सबसे महत्वपूर्ण और विवादास्पद नीतिगत प्रश्न है।

भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र का स्तर

प्राथमिक

(Primary)

भारत के प्राथमिक स्वास्थ्य क्षेत्र में उप-केंद्र (SCs) और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHCs) शामिल हैं, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की नींव बनाते हैं।
उप-केंद्र (Sub-centers)ये सबसे उपांतीय इकाइयाँ हैं, जो मैदानी क्षेत्रों में 5,000 और पहाड़ी/आदिवासी क्षेत्रों में 3,000 की आबादी को सेवा प्रदान करती हैं।
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (Primary Health Centers) ये 20,000-30,000 की आबादी की सेवा करने वाले योग्य डॉक्टर के साथ संपर्क के पहले केंद्र हैं। प्रत्येक PHC में 4-6 बिस्तर होते है और यह प्रोत्साहक, निवारक, उपचारात्मक और पुनर्वास देखभाल प्रदान करता है। गरीब और कमज़ोर लोग प्राथमिक स्तर की देखभाल के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों पर निर्भर हैं। यह सबसे सस्ती सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा होता है और उनके निवास स्थान के करीब होता है।
द्वितीय

(Secondary)

भारत में द्वितीयक स्वास्थ्य क्षेत्र में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHCs) शामिल हैं, जो PHCs के लिए रेफरल यूनिट के रूप में कार्य करते हैं।
CHCs 30 बिस्तरों की क्षमता वाले अस्पताल होता हैं जो चिकित्सा, सर्जरी, प्रसूति एवं स्त्री रोग और बाल रोग में विशेषज्ञ देखभाल प्रदान करते हैं। मैदानी क्षेत्रों में प्रत्येक 80,000-120,000 आबादी के लिए एक सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र और पहाड़ी/जनजातीय क्षेत्रों में 40,000-60,000 की आबादी के लिए एक सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र होता है।
तृतीयक

(Tertiary)

तृतीयक स्वास्थ्य क्षेत्र में जिला अस्पताल, मेडिकल कॉलेज अस्पताल और अन्य अति विशिष्ट सुविधाएं शामिल हैं।

जिला स्तर पर स्थित जिला अस्पताल 100-300 बिस्तरों वाले सुविधा केन्द्र होता हैं जिनमें विशेषज्ञ द्वारा परिचर्या प्रदान की जाती है।

मेडिकल कॉलेज अस्पताल तृतीयक देखभाल शिक्षण संस्थान हैं, जो राज्य की राजधानियों और प्रमुख शहरों में स्थित हैं।

विशिष्ट तृतीयक देखभाल सुविधाएं (Specialized Tertiary Care Facilities) इनमें क्षेत्रीय कैंसर केंद्र, मानसिक स्वास्थ्य संस्थान, ट्रॉमा सेंटर और अन्य सुपर-स्पेशियलिटी अस्पताल शामिल हैं। तृतीयक क्षेत्र अत्यधिक विशिष्ट देखभाल प्रदान करता है और स्वास्थ्य प्रणाली के माध्यमिक और प्राथमिक स्तरों के लिए एक रेफरल केंद्र के रूप में कार्य करता है|

भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र के विकास के लिए शुरू की गई सरकारी पहल क्या हैं?

राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM)NHM और NRHM ने वास्तुशिल्प सुधार के माध्यम से सार्वजनिक क्षेत्र की स्वास्थ्य देखभाल को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित किया है। इन मिशनों के तहत प्राथमिक स्वास्थ्य परिचर्या संस्थाओं को सुदृढ़ करके प्राथमिक स्वास्थ्य के सिद्धांतों का पालन करने के प्रयास किए गए हैं। इनसे 1,53,655 उप केंद्रों का विकास हुआ है,

ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्र, 2015 के अनुसार, देश में 25,308 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHCs) और 5,396 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHCs) हैं।

आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY)यह एक सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित स्वास्थ्य बीमा योजना (PFHI) है जो माध्यमिक और तृतीयक देखभाल अस्पताल में भर्ती होने के लिए 100 मिलियन से अधिक परिवारों को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करती है।
स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र (HWCs)सरकार प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को HWCs में बदलने की दिशा में काम कर रही है ताकि निवारक और प्रोत्साहक देखभाल सहित व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की जा सकें।
प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना PMSSY का उद्देश्य नए AIIMS (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान) संस्थानों की स्थापना और मौजूदा सरकारी मेडिकल कॉलेजों को अपग्रेड करके देश में तृतीयक देखभाल क्षमताओं को बढ़ाना और चिकित्सा शिक्षा को मजबूत करना है।
जन औषधि योजना प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना (PMBJP) का उद्देश्य जन औषधि केंद्रों के माध्यम से सस्ती कीमतों पर गुणवत्तापूर्ण जेनेरिक दवाएं उपलब्ध कराना है।
राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (NDHM)NDHM का उद्देश्य नागरिकों के लिये स्वास्थ्य ID और राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य अवसंरचना की स्थापना सहित एक डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र बनाना है।

 भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में मौजूदा चुनौतियाँ क्या हैं?

  1. स्वास्थ्य सेवा तक अपर्याप्त पहुँच (Inadequate Access to Healthcare)- बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं तक अपर्याप्त पहुंच विशेष रूप से ग्रामीण और कम सेवा वाले क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा बना हुआ है। उदाहरण के लिए- स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे और स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी (लगभग 600,000 डॉक्टरों की कमी)।
  2. अल्पकालिक परिणामों पर अदूरदर्शी ध्यान- ऐसे पहलों को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया गया है जो तत्काल परिणाम का वादा करते हैं, जैसे कि नए अस्पताल खोलना, सब्सिडी वाले उपचार और लोकलुभावन स्वास्थ्य नीतियाँ। प्राथमिक और माध्यमिक स्वास्थ्य सेवा क्षमताओं के समग्र विकास की उपेक्षा ने भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र की स्थिति को ख़राब कर दिया है।
  3. भारत सरकार द्वारा स्वास्थ्य सेवा पर कम व्यय- सरकार (केंद्र और राज्य दोनों को मिलाकर) लगभग 2.8 लाख करोड़ रुपये खर्च करती है, जो कि सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1.1% है। चीन (3%), थाईलैंड (2.7%), वियतनाम (2.7%) और श्रीलंका (1.4%) जैसे देशों में अन्य सरकारी स्वास्थ्य व्यय की तुलना में यह बेहद कम है।
  4. महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर पर्याप्त ध्यान का अभाव (Lack of adequate emphasis on critical areas)- स्वच्छता, रोग निगरानी और सार्वजनिक स्वास्थ्य शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है, जो जनसंख्या स्वास्थ्य को बनाए रखने और बीमारी के प्रकोप को रोकने के लिए महत्वपूर्ण हैं। उदाहरण के लिए- डेंगू जैसे संचारी रोग नियंत्रण को समझने या प्रभावी टीके विकसित करने जैसी दीर्घकालिक रणनीतियों का अभाव।
  5. लाभ-संचालित फार्मा सेक्टर (Profit-Driven Pharma Sector) – फार्मास्युटिकल उद्योग का लाभ-संचालित स्वभाव अक्सर सार्वजनिक स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों को दरकिनार कर देता है। स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं (व्यावसायिक हितों के कारण निजी क्षेत्र) के प्रति विश्वास में कमी आई है। उदाहरण के लिए- भारत में टीबी रोगियों का चिकित्सा हाशिए पर होना।
  6. एक व्यापक दृष्टिकोण का अभाव (Lack of a Comprehensive Approach)- भारत का वर्तमान सार्वजनिक स्वास्थ्य दृष्टिकोण चिकित्सक-केंद्रित है, जिसमें पर्यावरण विज्ञान, समाजशास्त्र, शहरी नियोजन और अर्थशास्त्र जैसे विभिन्न क्षेत्रों से विशेषज्ञता पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है।
  7. निवारक देखभाल की कमी (Lack of Preventive Care)- रोग की घटनाओं और स्वास्थ्य देखभाल की लागत को कम करने में इसके महत्व के बावजूद, भारत में निवारक स्वास्थ्य देखभाल का मूल्यांकन नहीं किया जाता है। यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत बीमारियों के ‘तिहरे बोझ’ का सामना कर रहा है, जिसमें संचारी रोग (जैसे टीबी और मलेरिया), गैर-संचारी रोग (जैसे मधुमेह और हृदय रोग), और उभरते संक्रामक रोग शामिल हैं।

भारत में मजबूत सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र के क्या लाभ हैं?

  1. स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच में सुधार (Improved the Access to Healthcare)- लैंसेट ने अपने नवीनतम अध्ययन में स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता और पहुंच के मामले में 195 देशों में भारत को 145वें स्थान पर रखा है, जो उसके पड़ोसी देशों चीन, बांग्लादेश, श्रीलंका और भूटान से पीछे है। इस प्रकार, चिकित्सा पेशेवरों और बुनियादी ढांचे की गुणवत्ता में सुधार करके इसे और अधिक सुलभ बनाकर सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार करने की आवश्यकता है।
  2. बेहतर स्वास्थ्य परिणाम (Improved Health Outcomes)- मजबूत सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा से बीमारियों का जल्दी पता लगाने और उपचार करने में मदद मिलती है, जिससे स्वास्थ्य परिणाम बेहतर होते हैं और बीमारी का बोझ कम होता है। उदाहरण के लिए – हृदय संबंधी बीमारियों जैसे गैर-संचारी रोगों का जल्दी पता लगाना और उपचार करना।
  3. वित्तीय बोझ में कमी (Reduction of Financial Burden)- बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएँ वित्तीय बोझ को कम कर सकती हैं और जेब से होने वाले उच्च व्यय को कम करके घरेलू वित्तीय स्थिरता में सुधार कर सकती हैं। उदाहरण के लिए- WHO के अनुसार, स्वास्थ्य पर विनाशकारी व्यय के कारण हर साल 55 मिलियन लोग गरीबी या गहरी गरीबी में पड़ जाते हैं।
  4. सामाजिक न्याय (Social Justice)- सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा और सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित स्वास्थ्य प्रणाली सामाजिक वर्ग की परवाह किए बिना समय पर, प्रभावी और निःशुल्क देखभाल प्रदान करती है। यह बदले में सामाजिक न्याय और DPSP सिद्धांतों की पूर्ति को बढ़ावा देता है।

आगे की राह क्या होनी चाहिए?

  1. स्वास्थ्य के लिए नीति आयोग कार्य योजना का कार्यान्वयन (Implementation of the NITI Aayog Action Plan for Health)- इसने इस पर सरकारी व्यय (सकल घरेलू उत्पाद का 2.5%) में उल्लेखनीय वृद्धि के माध्यम से सार्वजनिक स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करने और उपचारात्मक देखभाल प्रदान करने के बजाय निवारक देखभाल को प्राथमिकता देने की सिफारिश की है।
  2. स्वास्थ्य देखभाल लागत प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय आयोग (National commission for Health care cost management)- सरकार को स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों पर खर्च के लिए सिफारिशें करने और इसके प्रदर्शन की निगरानी के लिए एक राष्ट्रीय आयोग नियुक्त करना चाहिए।
  3. स्वास्थ्य को राजनीतिक प्रक्रियाओं से अलग करना (Separating Health from Political Processes)- सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी निर्णय अल्पकालिक राजनीतिक हितों के बजाय वैज्ञानिक साक्ष्य और दीर्घकालिक लक्ष्यों पर आधारित होने चाहिए।
  4. पोषण सहायता (Nutrition Support)- पोषण कार्यक्रमों में निवेश का स्वास्थ्य और उत्पादकता के लिए सकारात्मक दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा।
  5. व्यापक दृष्टिकोण (Comprehensive Approach)- प्रभावी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रबंधन में निवारक उपाय, नीति निर्माण, सामुदायिक स्वास्थ्य, पर्यावरणीय स्वास्थ्य आदि शामिल होने चाहिए।
  6. सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (Universal health coverage)- राज्य सरकारों को सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज के लिए ब्लूप्रिंट तैयार करना चाहिए और पायलट कार्यक्रमों के साथ प्रयोग और नवाचार शुरू करना चाहिए।
Read More- The Hindu
UPSC Syllabus- GS Paper 2 Social Justice – Issues relating to Health.

 

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